कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले,उस बिरसा के उलगुलान का जो आज तक उधार सा है🏹

कोई तो सूद चुकाए कोई तो ज़िम्मा ले,
उस बिरसा के उलगुलान का जो आज तक उधार सा है🏹
बिरसा के सिंहासन पर बैठे है नाथुराम जैसे लोग।।
हे! बिरसा तुम बीहड़ जंगलों से गुजरे हाथियों की तरह,
रौंधते गए भेड़ियों को शेरों की तरह,
हटाते गए नाथुओं को शूरवीरों की तरह,
तुम उस भंवर से लड़े, लहरों से उलझे तेरी वीरता पर काबिलाई को यकीं था॥
तेरे हौसलों के सामने ये आसमान भी कुछ कम था॥
तुमने उठायी अपनी तीर -कमान विशाल तोपों के सामने ॥
गोली भी कम थी तेरी फौलादी ताकत के सामने॥
बस तेरी लहू की स्याही ने एक ही बिगुलं फूॅकी..उलगुलान ..उलगुलान ..हूल उलगुलान ..