प्रकृतिक को अंगीकार करने वाला ही सच्चा आदिवासी है:बरखा लकड़ा

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झारखंड की सौंधी मिट्टी ने बहुत बार अपनी विरासत को लड़खड़ाते देखा है। यहाॅ आदिवासियों को हर धर्म का ताज पहनाया गया जिसका नतीजा आदिवासी वो ताज की ओर आकर्षित होते चले गये और अपनी मूल संस्कृति को छोड़ते गए। आदिवासी को परिभाषित दो तरीकों से किया जा सकता है -पहला जैसे :- आदिवासी वो है जो
आदिवासी माॅ के पेट से जन्म लेता है , प्रकृतिक की पूजा करता है.आदिवासी बोली , भाषा बोलता है अपनी टोटम, गोत्र या अपनी अटक लिखता है।
दूसरी परिभाषा -आदिवासी वो है जो अपनी आध्यात्मिक शक्ति, अपनी संस्कृति, की रक्षा हेतू एक पृथक भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करता जो शहरी क्षेत्रों से दूर होता हैं। इनकी जीवन शैली प्राचीन, प्रकृतिक आधारित और रूढ़िवादी होता हैं।

वर्त्तमान में आदिवासी संस्कृतियों में काफी भटकाव आयी है .ये विल्कुल नदी के रास्ते की तरह हो गई है.जहाँ -जहाँ जगह मिलते गई वहाॅ -वहाॅ बहते चला गया। नतीजा आज आदिवासी समाज में काफी विकृतियाॅ आ गई हैं। जिस तरह एक आदिवासी बेटी अगर एक गैर आदिवासी से शादी करती है तो वहाॅ पर से आदिवासी संस्कृति का पतन होना शुरू हो जाता है वैसे ही अगर एक आदिवासी गैर आदिवासी धर्म और उसकी संस्कृति का अनुसरण करने लगता है तो वहाॅ से ही आदिवासी का पतन होना शुरू हो जाता हैं। सच्चा आदिवासी वही है जो आधुनिकता के साथ-साथ अपनी प्रकृतिक आधारित जीवन शैली को भी अपनाता हैं।

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