भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी)झारखंड राज्य कमिटी ने कहा की प्रधानमंत्री का झारखंड दौरा एक असफल चुनावी कसरत

रांची:13 करोड़ लोगों को पांच वर्ष में गरीबी रेखा से निकालने का दावा एक और जुमलेबाजी-माकपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खूंटी में आयोजित अपनी सभा में ‘जन जातीय गौरव दिवस’ का एलान तो कर दिया लेकिन झारखंड सहित भारत के आदिवासी आज जिस प्रकार अपनी जमीन, जंगल और गांवों से विस्थापित हो रहें है उस संबंध में उन्होंने कुछ नहीं कहा. अपने 43 मिनट के लंबे भाषण में उन्होंने संविधान में प्रमुखता से उल्लेखित सामाजिक न्याय और सेकुलरिज्म का मजाक भी उड़ाया.
प्रधानमंत्री ने आदिम जनजाति के लिए 24 हजार करोड़ की दो भारी भरकम देशव्यापी योजनाओं ‘पीएम जनमन जनजाति न्याय महाअभियान’ और विकसित भारत संकल्प यात्रा की घोषणा की है.साथ ही अगले 25 वर्षों के अमृत काल में विकसित, भव्य, दिव्य भारत के निर्माण के लिए चार अमृत स्तंभ के कथित मंत्र का भी जाप किया.
कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की यह सारी कसरत आगामी चुनाव में आदिवासियों को लुभाने की चाल है.
लेकिन आदिवासी विशेष कर झारखंड के आदिवासी केंद्र की भाजपानीत सरकार के आदिवासी विरोधी नीतियों के भुक्तभोगी हैं और वे इस शातिराना चाल के फंदे में फंसने वाले नहीं हैं. केंद्र हो या राज्य
भाजपा के शासनकाल में आदिवासी जनता पर सुनियोजित हमले जारी हैं. वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर मोदी सरकार ने देश के जंगलों के संरक्षण का काम कार्पोरेट घरानों को सौंपने का काम किया है इससे सबसे ज्यादा प्रभावित आदिवासी ही होंगें. झारखंड की खनिज संपदा की लूट के लिए केंद्र सरकार इस आदिवासी बहुल राज्य में संविधान की 5 वीं अनुसूची को दर किनार कर और ग्रामसभा की उपेक्षा कर खनन का काम कार्पोरेट घरानों के हवाले कर रही है. एक ओर जनजातियों के लिए लोक लुभावन घोषणाओं की जुमलेबाजी और दुसरी ओर उन्हें अपनी भूमि, जंगल, पानी और खनिज के लाभांश से वंचित करने की साजिश के साथ – साथ आदिवासियों को इसाई और गैर इसाई में विभाजित करने का षडयंत्र यही भाजपा सरकार का दोहरा चरित्र है. प्रधानमंत्री झारखंड आकर चुनावी लाभ के लिए कितनी भी कसरतें कर लें झारखंड के गरीब और आदिवासी उनकी बात पर भरोसा नहीं करेंगे.
प्रधानमंत्री ने झारखंड आकर देश का गौरव एचईसी के संबंध में कुछ नहीं कहा. जबकि इसरो द्वारा किए गए चंद्रयान – 3 और आदित्य एल – 1 के सफल प्रक्षेपण मे एचईसी की भूमिका से सारा देश अवगत है. इसका श्रेय माननीय प्रधानमंत्री ने भी लिया था. एचईसी का पुनरुध्दार, उसे कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराने और कारखाना का आधुनिकीकरण करने के बारे में उनकी चुप्पी इस बात का प्रमाण है कि वे देश की माता उधोग को मरणासन्न ही रखना चाहते हैं.जबकि प्रधानमंत्री हर समय राष्ट्रवाद की दुहाई देते रहते हैं. प्रधानमंत्री के संज्ञान में यह बात तो होगी ही कि एचईसी के इंजीनियरों और श्रमिकों को पिछले 18 माह से वेतन नहीं मिला है. यहां के मजदूर पिछले दिनों दिल्ली में संसद के समक्ष धरना देकर प्रधानमंत्री के नाम स्मार पत्र भी दे चुके हैं.लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुयी है.