रांची में आदिवासी समन्वय मंच ने मणिपुर में हिंसा, सामान्य नागरिक संहिता का विरोध और आदिवासियों के लिए एक धर्म कोड देने की मांग की की।

रांची के कटहल मोड़ स्थित लालगुटवा रिसोर्ट में दो दिवसीय “राष्ट्रीय आदिवासी समिट” के पहले दिन के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में 12 राज्यों आदिवासी बुद्धिजीवी एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। यह कार्यक्रम समान नागरिक संहिता (UCC), मणिपुर हिंसा एवं देश के विभिन्न भागों में आदिवासियों के प्रति हो रहे जुल्म अत्याचार को रोकने, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड देने, भारत व प्रदेशों के विभिन्न सरकारों के समक्ष अपनी आवाज बुलंद करने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी दबाव समूह (प्रेशर ग्रुप) गठन करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया।
यह कार्यक्रम आदिवासी समन्वय मंच, भारत के तत्वावधान में राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा भारत व जय आदिवासी युवा शक्ति (JAYS) के बैनर तले किया जा रहा है।
कार्यक्रम की शुरूआत विभिन्न राज्यों से आए आदिवासी बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं के स्वागत कार्यक्रम के साथ किया गया।
आयोजक मंडल की तरफ से संजय पहान (राष्ट्रीय प्रवक्ता राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा, भारत एवं झारखंड व पश्चिम बंगाल प्रभारी जयस) ने विभिन्न राज्यों से आए सभी बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं का स्वागत किया। इसके उपरांत सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा ने सरना धर्म विधि अनुसार प्रार्थना सभा कर धरती और प्रकृति का आह्वान किया और कार्यक्रम में उपस्थित सभी से धरती और प्रकृति को बचाने एवं संरक्षित करने के लिए प्रेरित किया। इसके उपरांत कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए सर्वसम्मति से सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा को चुना गया। कार्यक्रम प्रथम सत्र का संचालन विश्वनाथ तिर्की (महासचिव, आदिवासी समन्वय मंच) ने किया। द्वीतीय सत्र का संचालन सुनील हेम्ब्रम (संथाल परगना प्रभारी, जय आदिवासी युवा शक्ति जयस) ने किया। स्वागत के लिए सरना उतरनी (पगड़ी) चाला अखड़ा खोखा के अध्यक्ष बंदी उरांव द्वारा दिया गया। साथ में कार्यक्रम में करमा उरांव (ट्राइबल्स ड्रीम, मजदूर भी हम, मालिक भी हम, एक सहकारी आंदोलन के झारखंड राज्य के संरक्षक) और मंगला तिर्की उरांव (मैनेजिंग डायरेक्टर, मे. रिमेल एंड पोइना प्रा.लि.) का भी विशेष सहयोग रहा।
कार्यक्रम का एजेंडा –
(1) मणिपुर हिंसा पर विस्तृत चर्चा
(2) वोट बैंक हेतु अन्य संभ्रांत वर्गों को आदिवासी जनजाति दर्जा देने की सरकारों के नीति पर विशेष चर्चा
(3) संवैधानिक रूप से जनजाति शब्द को हटाकर हमारी पहचान “आदिवासी” शब्द हो, इस पर विशेष चर्चा पर परिचर्चा।
(4) आदिवासियों की धार्मिक पहचान व सरना-मसना, धूमकुड़िया, माजी-थान, जहेर- थान, को बचाने हेतु अलग से धर्मकोड़ हेतू विस्तृत चर्चा परिचर्चा
(5) शिडूल डिस्ट्रिक्ट अधिनियम – 1874 पांचवी अनुसूची 244(1) पी-पेसा कानून 1996, समता निर्णय 1997, वन अधिकार अधिनियम 2005/06 से संबंधित प्रदत शक्ति, आदिवासी अधिकारों से संबंधित शासन(गवर्नेंस) को लागू करते हुए “अबूआ दिशूम, अबूआ राज” की परिकल्पना को हकीक़त कर ठेका-पट्टा ,बाजार हॉट, वन उपज, बालू पत्थर,खनिज लवण, नौकरी चाकरी, पूरे देश के अनुसूचित क्षेत्रों में दबाव समूह ( प्रेशर ग्रुप) बनाकर हम आदिवासी कैसे प्राप्त कर सकते हैं, इसपर विस्तृत परिचर्चा।
किसने क्या कहा –
राजकुमार पहान (आदिवासी मामलो के संवैधानिक जानकार एवं समाजसेवी) ने कहा – स्वतंत्रता के बाद आदिवासियों के दस्तूर कानून समाज के व्यवस्था के तहत चल रहा था। इसीलिए स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों ने आदिवासियों के लिए कोई भी कस्टमरी लॉ नहीं बनाया बल्कि सामाजिक कानूनों को ही मान्यता दिया। स्वतंत्रता के बाद उत्तर पूर्वी राज्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 371 (A) नागालैंड के लिए, 371(G) मिजोरम के लिए, केंद्र सरकार का रूढ़ि प्रथा पर कोई भी कानून सीधे लागू नहीं होगा जबतक कि राज्य विधानसभा संकल्प द्वारा पारित नहीं कर देता। एवं अनुच्छेद 244(2) के तहत असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्य के दस जनजातीय जिलों में भी केंद्र सरकार द्वारा लागू नहीं कीया जा सकता है। तथा भारत के विभिन्न राज्यों के आदिवासियों के लिए रूढि प्रथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 13(3) में विधि का बल प्राप्त है। इसीलिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को किसी कीमत पर आदिवासी समाज स्वीकार नहीं करेगा। अतः सरकार से मांग है कि आदिवासी समुदायों को यूसीसी कानून से बाहर रखे। क्योंकि स्वतंत्रता से पहले भी और आज भी आदिवासियों की परंपरागत दस्तूर कानून को मान्यता प्राप्त है और प्रचलन में भी है।
अशोक चौधरी (अध्यक्ष, आदिवासी एकता परिषद) ने कहा – यूसीसी के लागू करने से समाज “व्यक्ति केंद्रित” होकर बिखर जाएगा। पूंजीवादी विचारधारा हावी हो जाएगी, आदिवासियों की संपत्ति जल जंगल जमीन पर उद्योगपतियों और गैर-आदिवासियों का कब्जा हो जाएगा। यूसीसी के द्वारा षड्यंत्र के तहत कुछ संभ्रांत आदिवासियों को अपने पक्ष में लाने के बाद आदिवासियों की राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों को पूंजीवादी तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा। पूरा परिदृश्य को पूंजीवादी हो जाएगा।
बंधन तिग्गा (सरना धर्म गुरु) – आदिवासियों के हित में अनेक कानून रहते हुए भी आदिवासियों का शोषण किया जा रहा है, जल जंगल जमीन लूटा जा रहा है, जो चिंता का विषय है। इसी के समाधान के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है। विभिन्न प्रदेशों से हमारे आदिवासी बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता गण मिलकर यहां तय करेंगे कि इसका समाधान कैसे किया जाए।
विभिन्न राज्यों से कार्यक्रम में आए प्रमुख आदिवासी बुद्धिजीवी एवं कार्यकर्ता –
अशोक चौधरी (गुजरात), अनु अरूणा कुजूर (जशपुर, छत्तीसगढ़), बेनीलाल वसावा (सूरत, गुजरात), ठाकोर भाई चौधरी (गुजरात), गजरा मेहता (इंदौर, मध्यप्रदेश), राजन कुमार (उत्तर प्रदेश), सुश्री कुसूम रावत (अध्यक्ष, आदिवासी एकता परिषद महिला विंग, राजस्थान), शंभू हंसदा (असम), जवरभाई वसावा (गुजरात), बृजभाई चौधरी (गुजरात), डॉ. सुनील प्रहाद (महाराष्ट्र), राजेश गोंड (बिहार), ए.जी. पटेल (गुजरात), संजय पटेल (गुजरात), डीएम पटेल (गुजरात), नीरव पटेल (गुजरात), डॉ. प्रदीप गरसिया (गुजरात), निकोलस बारला (ओड़िशा), रोशन एक्का (दिल्ली), डेनियल हंसदा (असम)
झारखंड के प्रमुख बुद्धिजीवी और कार्यकर्ता –
राणा प्रताप उरांव (संरक्षक, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा), रवि तिग्गा (झारखंड प्रदेश अध्यक्ष, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा), प्रभात तिर्की एवं राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ के अनेक कार्यकर्ता, जयस झारखंड के सभी जिला प्रभारी, सुखदेव मुर्मू (धनबाद), श्यामलाल मरांडी (जामताड़ा), के.सी. मार्डी (जमशेदपुर), शिव उरांव (रांची), कलिंदर उरांव (लोहरदग्गा), दिलेश्वर उरांव (लातेहार), राहुल मुर्मू (बोकारो), निर्मल मरांडी (सचिव, संथाल परगना, सरना राजी पड़हा प्रार्थना सभा), एस एन. बेदिया (हजारीबाग), प्रदीप मरांडी (जयस प्रभारी, गोड्डा), मनोज कुमार टुडू (जयस प्रभारी, साहेबगंज), अर्जुन हेम्ब्रम (जयस प्रभारी, गिरिडीह), राजीव किस्कू (ट्राइबल ड्रीम अध्यक्ष, धनबाद), सुनील कच्छप (अध्यक्ष, आदिवासी 21 पड़हा नगड़ी), रेनू उरांव, कमलई किस्पोट्टा, डेसा उरांव (रांची जयस), रंथू उरांव